बच्चों को संस्कार संस्कृति और परम्पराओं से जोड़ें !
संस्कार -संस्कृति और परम्पराएँ भारतीय जीवन के आधार हैं ! हमारे बड़े -बुजुर्ग कहते हैं कि बच्चों को समय , संस्कार -संस्कृति और परम्पराएँ दें , तो फिर कुछ और देने की जरूरत नहीं होती ! पर अफसोस है कि आज हमारे बच्चों को यही चीजें नहीं मिल रही है ! अगर यही स्तिथि रही तो एक दिन आने वाली पीढ़ी के पास दौलत , शोहरत और सारी भौतिक सुविधा होते हुए भी इस बुनियाद से वंचित रह जायेंगे ! हमारे समय में मांएं अपने बच्चों को इन्सान बनाने का पाठ पढ़ाया करती थी ! वे कहती थीं कि बेटा -बेटी को जन्म देना कोई बड़ी बात नहीं हैं ,बड़ी बात है उन्हें समय ,संस्कार ,संस्कृति और परम्पराएँ देना ! पहले मांएं , दादी , नानी ,भुआ अपने -अपने हिस्से का फर्ज निभाया करती थी ! लेकिन आज ये सब नहीं होता है ! कमाऊ माँ - बाप पैसा खर्च करने को तो तैयार हैं पर अपने बच्चों के पालन -पोषण पर ध्यान देने और संस्कारों के लिए समय देने को तैयार नहीं हैं ! आज बच्चों की परवरिश को भी आउटसोर्स किया जाने लगा है ! कईअभिभावक भारतीय संस्कार और परम्पराओं को दकियानूसी और समय की बर्बादी बताकर छोड़ते जा रहे हैं ! मजबूरी हो या पसंद , आज नगर हों या गाँव , अधिकांशत: एकल परिवार ही होते जा रहे हैं ! आज बच्चों को उनके पूर्वजों समेत संस्कार -संस्कृति और सारी विरासत से जोड़ने वाली कड़ी ,दादा-दादी,नाना -नानी जैसे बुजुर्गों से वंचित रखा जाने लगा है ! आज हमारे बच्चों से सिर्फ कहानियाँ ही नहीं छूटी है , उनके साथ भाषा , संस्कार , संस्कृति , धर्म और शिष्टाचार भी छूटता जा रहा है ! आज हमारे बच्चे मोबाइल - फोन , ऐप और इन्टरनेट के फार्मूले को तो आत्मसात कर रहे हैं , पर असल में जिन्दगी जीने के फार्मूलों से कोसों दूर होते जा रहे हैं !
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