स्वर्गस्थितानामहि जीवलोक, चत्वारि चिन्हानी वसन्ति देहे ! दान प्रसंगो मधुरा च वाणी , देवा $र्चनं ब्राह्मणतर्पण च !! (7-16) भावार्थ :- " दान देने में रूचि , मधुर वाणी , देवताओं की पूजा तथा ब्राह्मणों को संतुष्ट रखना - इन चारों लक्षणों वाला व्यक्ति इस लोक में कोई स्वर्ग की आत्मा ही होता है ! हतं ज्ञानं क्रियाहीनं, हत्श्चा $ज्ञानतो नर:! हतं निर्नायकं सैन्यं , स्त्रियों नष्टा ह्यभतृका !! (8-8) भावार्थ :- "जिस ज्ञान पर आचरण न किया जाये ,वह ज्ञान नष्ट हो जाता है ! अज्ञान से मनुष्य का नाश हो जाता है ! सेनापति के बिना सेना तथा बिना पति के स्त्री नष्ट हो जाती है !