भाई और पानी को मिलते देर नहीं लगती
किसी गाँव में दो भाई रहते थे ! दोनों भाइयों में बड़ा अच्छा प्रेम था ! दोनों मिलकर खेती -बाडी करते थे !खेती - बाडी से जो भी कमाई होती थी उसे वे आधी - आधी बाँट लेते थे ! जिन्दगी बड़ी अच्छी तरह से गुजर रही थी ! एक बार किसी बात को लेकर दोनों में झगडा हो गया ! दोनों में आपसी खींचातान बढ़ गई ! दोनों के मन में स्वार्थ पैदा हो गया ! बड़े भाई ने आधे खेत पर अपना कब्जा कर लिया और खेत के बीचों - बीच एक खाई भी खुदवा दी , ताकि छोटा भाई उसके खेत में न आ सके ! खेत के बीच खाई देखकर छोटे भाई को बहुत गुस्सा आया ! और उसने भी बदला लेने के लिए कारीगर को बुलाकर खेत के अपने हिस्से के किनारे -किनारे ऊँची -ऊँची बाड बनाने को कहा ताकि वह अपने भाई का चेहरा भी नहीं देख सके ! कारीगर को पैसे देकर कहा कि तुरंत काम शुरू कर दो ! कारीगर ने कहा कि अगले दिन तक काम पूरा हो जायेगा ! अगली सुबह जब छोटा भाई अपने खेत पर गया तो हैरान रह गया ! वहां कोई बाड नहीं थी बल्कि उसकी जगह खाई पर लकड़ी का एक पुल बना हुआ था ! यह देखकर छोटा भाई आग बबूला हो गया ! वह कारीगर को बुलाकर डांटने वाला ही था कि तभी बड़ा भाई वहां आ गया और बोला कि मैंने तुम्हारे साथ बुरा किया फिर भी तुमने मुझसे भाई का रिश्ता नहीं तोडा ,और खाई पर पुल बनवा दिया ? मेरे भाई मुझसे स्वार्थ वश गलती हो गई ! मैं इसके लिए तुझसे माफ़ी मांगता हूँ ! मुझे माफ़ कर दे ! अब हम यह खाई पाट देंगे और पहले की तरह ही फिर से मिलकर खेती करेंगे और मिलकर प्रेम -प्यार से रहेंगे ! छोटे भाई ने भी हाथ जोड़ कर कहा भाई मैं भी स्वार्थ और इर्ष्या में पागल हो गया था ! मुझे भी माफ़ कर दो ! दोनों भाई आपस में गले मिले और फिर से प्रेम से रहते हुए मिलकर खेती करने लग गये ! सच है - थोड़ी सी समझदारी से रिश्तों की कडवाहट को पूरी तरह से मिटाया जा सकता है ! यह भी सच है की भाई और पानी को मिलते देर नहीं लगती !
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