Thursday, October 19, 2017

गुरु -शिष्य का होता है महान और अटूट रिश्ता

                                                                     भारतीय संस्कृति महान सनातन संस्कृति है ! गुरु शिष्य का रिश्ता भी महान और अटूट होता है ! गुरु शिष्य भी एक दूसरे के बिना अधूरे हैं !                                                                                                     भारत देश में गुरु -शिष्य की परम्परा भी प्राचीन और सनातन है ! गुरु तो एक कुम्हार की तरह होता है ,जो मिटटी से खूबसूरत घडा बना देता है ! गुरु अपने शिष्य के व्यक्तित्व को तराश कर पूर्ण रूप से निखारता है ! तथा उसे जीवन की राह पर आगे बढने व सपनों को पूरा करने में मदद करता है !                                                                                           हमारी भारतीय संस्कृति में गुरु को सर्वोच्च स्थान दिया गया है ! गुरु एक अच्छा मार्गदर्शक होता है ! माँ बच्चे की पहली गुरु होती है ! बच्चे के व्यक्तित्व में आचार -विचार और व्यवहार का बीजारोपण माँ ही करती है ! उसके बाद परिवार व समाज में बच्चा जो देखता है ,वही सीखता है !                                                                     सिर्फ स्कूल-कॉलेज में पढाने वाले शिक्षक या धर्म गुरु ही गुरु नहीं होते हैं ! जीवन के प्रत्येक मोड़ पर जिससे भी कुछ सीखने को मिले ,वह भी गुरु हैं !                                                                                  प्राचीन गुरुकुल परम्परा में गुरु सिर्फ शिक्षा ही नहीं देते थे ,बल्कि बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए प्रयासरत रहते थे ! समय के साथ व्यवस्था बदलती गई और इस महान - पवित्र रिश्ते में भी कई तरह की विकृतियाँ आती गई!                                                                                  गुरु का काम है ज्ञान बाँटना और शिष्य का काम है उसे मेहनत ,लग्न व ईमानदारी से ग्रहण करना ! दोनों को ही अपना कार्य पूरी एकाग्रता व समर्पण से करना होता है ,क्योंकि दोनों एक -दूसरे के बिना अधूरे हैं ! गुरु को अच्छे शिष्य की और शिष्य को अच्छे गुरु की जरूरत होती है !                                                                               गुरु -शिष्य का रिश्ता जीवनभर का होता है ! व्यक्ति अपने गुरु को कभी भी भूलता नहीं है ! मैं स्वयं व्यक्तिगत तौर पर हमेशा मरते दम तक अपने गुरुजनों को नहीं भूलूंगा और उनका कोटि कोटि नमन करते हुए शुक्रगुजार रहूँगा ! 

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