बहुत पुराने समय की बात है ! एक राज्य पर किसी दूसरे देश के विधर्मी शासक ने एक बार अचानक से आक्रमण कर दिया ! राजा ने अपने सेनापति को तुरंत आदेश दिया कि वे सेना लेकर सीमा पर जाएँ और उन आक्रमणकारी- अत्याचारी का मुंहतोड़ जवाब दें ! उस राज्य का सेनापति अहिंसावादी था ! वह लड़ना नहीं चाहता था ! लेकिन राजा का आदेश सीमा पर सेना ले जाकर लड़ने का था ! वह सेनापति बड़ी मुसीबत में पड गया ! बड़ी अजीब स्थिति थी ! आतताइयों से राज्य को भी बचाना जरूरी था ! सेनापति को जब कोई रस्ता नहीं सुझा तो वह अपनी समस्या लेकर परामर्श करने के लिए भगवान बुद्ध के पास गया ! उनके चरणों में नमन किया और अपनी समस्या बताते हुए कहा कि -हे भगवन !अगर युद्ध होगा तो सैकड़ों सैनिक मारे जायेंगे ,धन -बल का भी भारी नुकसान होगा , क्या यह हिंसा नहीं है ? महात्मा बुद्ध ने उसे समझाते हुए कहा कि हाँ यह हिंसा तो है ! पर मुझे तुम यह बताओ कि यदि हमारी सेना ने उन अत्याचारियों का मुकाबला न किया तो क्या वे बिना अत्याचार ,लुट -पाट किये वापस अपने देश चले जायेंगे ? सेनापति ने कहा-नहीं, वे बिना अत्याचार और बिना लुट -पाट के तो वापस नहीं जायेंगे ! वे हमारे देश में निरपराध लोगों की हत्या करेंगे ! फसल ,सम्पत्ति और धन बल का भारी नुकसान करेंगे ! महात्मा बुद्ध ने कहा-अगर आक्रमणकारी ऐसा करेंगे तो क्या यह हिंसा नहीं होगी ? यदि तुम यही सोच कर, हिंसा के भय से चुप बैठे रहे तो जरा सोचो ,तब हमारे देश के कितने निर्दोष लोग मारे जायेंगे ? राज्य को कितना नुकसान होगा ?और हाँ ,इस हिंसा का पाप तुम्हारे सिर पर ही आएगा ! बुद्ध भगवान की बात सुनकर सेनापति ने अपना सिर झुका लिया ! क्या हमारी सेना आक्रमणकारियों से लड़ने में सक्षम है ? बुद्ध ने सेनापति से पूछा ! जी हाँ ! सेनापति ने उत्तर दिया ! बुद्ध ने कहा- तो ऐसे में देश और प्रजा की रक्षा करना ही तुम्हारा परम धर्म और परम कर्तव्य है ! अहिंसा का अर्थ कायरता नहीं है ,बल्कि दूसरे पर अत्याचार न करना होता है ! सेनापति ने महात्मा बुद्ध के चरण छुकर आशीर्वाद लिया और युद्ध की रणभेरी बजा दी !
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